इतनी भी क्या जल्दी थी बल्लू!
बल्लू! कितने सपने संजोए थे तेरे लिए। भैया ने, भाभी ने, दोनों दीदियों ने, मम्मी ने, पापा ने, मैंने। बर्तन, अलमारी, कूलर, पंखे सारे साज-ओ- सामान इकट्ठे कर लिए गए थे तेरे ब्याह के लिए। सब की कामना थी तेरे हाथों में मेहंदी लगते देखने की। सोचा था पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ा काम कर लूंगा तो कुछ और तो नहीं पर अपनी कमाई से 5 थान बर्तन और 1 जोड़ी साड़ी तो दे सकूंगा। भैया दुनिया की सारी सुख- सुविधाएं, खाना- पीना भूलकर लकड़ी की कंपनी में 20- 20 घंटे सिर्फ इसलिए काम करते रहे कि बेटी का ब्याह अच्छे से हो जाए। मम्मी पापा के मन में एक अपार खुशी थी की नातिन का ब्याह देख लें। उनकी इच्छा भी पूरी न हो सकी। पापा हमेशा कहते थे कि नातिन का ब्याह धूमधाम से करूंगा, भले ही कितने भी पैसे लग जाएँँ। पापा की इस इच्छा को भैया ने अपना सबकुछ मान लिया था, और काम करते-करते नर कंकाल हो गए थे। अंततः व्यवस्था हो गई थी। पर किसे पता था कि अकारण ही पेट में दर्द उठेगा और तू हम सब को छोड़ कर काल के गाल में समा जाएगी।
बल्लू! तुझे आखरी बार मैंने तब देखा था जब तू 10 साल की थी। तेरा बाल रूप और फोन में सुनी हुई तेरी आवाज ही मुझे याद है। तुझे सोचने, देखने, सुनने, महसूस करने, और याद करने से ज्यादा दुख भैया के एक जून खाना खाकर 16-16 घंटे मोटी- मोटी लकड़ियों को कंधे में लादकर मम्मी पापा के अरमानों और खुशियों को बढ़ाने में लगी मेहनत का हो रहा है। जिस इंसान की सारी खुशियां तेरे ब्याहने में थीं, जो इस खुशी के लिए सारी दुनिया को भूल गए थे, आज डोली की जगह अर्थी में तुझे विदा करेंगे।
भैया! मैं दिल से इतना ठोस होने के बाद भी अपने को सहज अनुभव नहीं कर पा रहा हूं तो आप तो पिता हैंं। कितने भी पत्थर दिल रहे हों फिर भी दुख नहीं सहा जा रहा होगा। भाभी तो एक दम टूट गई होंगी। दीदी की दशा तो फोन में ही ऐसी हो रही थी तो सामने क्या होगी। मम्मी के सारे आंसू तो पहले ही दुख के सैलाब में बह गए थे, भगवान उनको और कितना रुलाएगा। पापा ने हमें, आपको, हम सबको, पुरुषार्थ सिखाया है। लेकिन बड़े पापा के देहांत के समय उन्हें भी मैंने टूटते हुए देखा है। पता नहीं इस उम्र में इतने बड़े दुख से मम्मी- पापा उबर भी पाएंगे कि नहीं!
पर भैया! दुख के इस कड़वे रस को तो पीना ही होगा। पिया तो मुझसे भी नहीं जा रहा है लेकिन उगलने से वह विष मम्मी- पापा, भाभी और दीदी तक जाएगा। परिस्थितियां और भी बिगड़ेंगी। इसलिए दोनों भांजिओं को देखकर ही ढाढस बांधना होगा। आगे वही हैं, उनका भविष्य है, शादी ब्याह है, बल्लू तो अब यादों में ही रह गई।
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