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Showing posts from January, 2022

पर्दे के पीछे की दास्तान

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  तुम M.Sc इसी कॉलेज से करोगे ना? इंटर्नशिप के आखिरी दिन उसने मुझसे पूछा था। मैंने मुस्कुरा कर उत्तर दिया था- हाँ माइ डियर और कहाँ जाऊंगा? इस कॉलेज में सब कुछ तो है अपना! सबकुछ क्या? अरे पगली! तुम नहीं हो मेरा सबकुछ?  मैं? हाँ..। इतना सरप्राइस होने की जरूरत नहीं है। तुम्हीं तो हो मेरा सबकुछ।  निःशब्द हो गई थी वह। प्रेम ने मौन का रुप धारण कर लिया था। खुशी के मारे झूम गई थी मेरी बाहों में। अरे क्या कर रही हो? सामने प्रोफेसर्स खड़े हैं।  मैंने अलर्ट करते हुए कहा था। लेकिन अनसुना कर दिया था मेरी बात को उसने। मेरी आँखों में निहारते हुए बड़ी उम्मीद भरी नजरों से धीमे स्वर में उसने कहा था - झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना? नही यार! तुमसे झूठ क्यों बोलूँगा। गंभीर होते हुए मैंने उत्तर दिया था। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी क्षितिज। बड़े गंभीर लेकिन सुखद अल्फाज में उसने कहा था। और फिर जैसे फूल भंवरों के पास होने से असीम आनंद का अनुभव करते हैं, वैसे ही वह मेरे बाहों में लिपटी किसी दूसरे लोक में खो गई थी। इंटर्नशिप वाइवा शुरू होने में 2 मिनट शेष थे, मैंने आहिस्ते से आवाज दी...- चलें वाइवा देने या इसी पोजीशन म

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी समुदाय से हैं।

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 "Prime minister belongs to the OBC community. " -BJP spoke person SAHJAD PUNAWALA has said on india today show. अब मेरे कुछ सवाल- (1) यह उत्तर प्रदेश चुनाव के समय ही क्यों याद आया? (2) मोदी जी तो राष्ट्र पर भरोसा करते हैं, जाति और समुदाय पर नहीं। फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि भाजपा के प्रवक्ता प्रधानमंत्री का समुदाय बता रहे हैं? (3) अगर वोट बटोरने के लिए प्रधानमंत्री को अपना समुदाय बेचना पड़ रहा है, तो फिर कैसे होगा 'सबका साथ, सबका विकास? और कैसे मिल पाएगा सबका विश्वास' ? (4) अगर प्रधानमंत्री ओबीसी समुदाय से आते भी हैं, तो जब जातिगत जनगणना के मुद्दे उठाए गए, तो सरकार ने इसको टालने की कोशिश क्यों की?  (5) जब देश की आबादी का आधा हिस्सा ओबीसी समुदाय ही है( 1931 की जनगणना के अनुसार) और प्रधानमंत्री को भी ओबीसी समुदाय का हिमायती बताया जा रहा है; तो सरकार जातिगत जनगणना कराने से क्यों मुकर रही है ? (6) प्रधानमंत्री के ओबीसी समुदाय से होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी पर 'सवर्णों की पार्टी' होने का आरोप क्यों लगता है? (7) वर्ण व्यवस्था के अनुसार ओबीसी समुदाय को शूद्रों म

डार्क सर्कल भी गहरी कहानी कहते हैं।

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 आँखों के नीचे बने डार्क सर्कल भी एक कहानी बयां करते हैं। उस सपने को परिभाषित करते हैं, जिसे एक निम्नवर्गीय परिवार का कोई भी लड़का आज के परिवेश में देखना तो दूर, सोचने का भी साहस नहीं कर सकता। जी हाँ!  मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे दुस्साहस की जिसे पढ़ाई कहते हैं। जब मैं दसवीं क्लास में था मुझे बताया गया दसवीं पास करना बहुत कठिन है। और फर्स्ट डिवीजन का तो सोचना भी असंभव है। मेरे मन में एक सवाल आया- ऐसा क्या है यार इस परीक्षा में? यह सवाल मुझे साल भर कभी न भूला। विद्यालय में जो पढ़ाया जाता रहा, उसी को पढ़ता रहा। लेकिन मन में यह भी सोचता रहा कि अगर यही सब परीक्षा में आना है; तो परीक्षा इतनी कठिन कैसे होगी? दिन बीते और परीक्षा का समय भी आया। प्रश्न सामान्य थे और उत्तर देने का ढंग भी लगभग वैसा ही था। लेकिन रिजल्ट आने पर पता चला कि मैंने बहुत बड़ा तीर मार लिया है। लोगों को भरोसा ही नहीं हुआ कि यह कैसे हो गया? और भरोसा हो भी क्यों? 3 बजे रात से उठकर अंग्रेजी के पैराग्राफ रटने का रूटीन मैंने बनाया था, लोगों ने नहीं ? गणित के चार- चार पन्ने के सवालों को चालीस-चालीस बार लिखने की आदत मैंने डाली थी,