पर्दे के पीछे की दास्तान
तुम M.Sc इसी कॉलेज से करोगे ना? इंटर्नशिप के आखिरी दिन उसने मुझसे पूछा था। मैंने मुस्कुरा कर उत्तर दिया था- हाँ माइ डियर और कहाँ जाऊंगा? इस कॉलेज में सब कुछ तो है अपना! सबकुछ क्या? अरे पगली! तुम नहीं हो मेरा सबकुछ? मैं? हाँ..। इतना सरप्राइस होने की जरूरत नहीं है। तुम्हीं तो हो मेरा सबकुछ। निःशब्द हो गई थी वह। प्रेम ने मौन का रुप धारण कर लिया था। खुशी के मारे झूम गई थी मेरी बाहों में। अरे क्या कर रही हो? सामने प्रोफेसर्स खड़े हैं। मैंने अलर्ट करते हुए कहा था। लेकिन अनसुना कर दिया था मेरी बात को उसने। मेरी आँखों में निहारते हुए बड़ी उम्मीद भरी नजरों से धीमे स्वर में उसने कहा था - झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना? नही यार! तुमसे झूठ क्यों बोलूँगा। गंभीर होते हुए मैंने उत्तर दिया था। मुझे तुमसे यही उम्मीद थी क्षितिज। बड़े गंभीर लेकिन सुखद अल्फाज में उसने कहा था। और फिर जैसे फूल भंवरों के पास होने से असीम आनंद का अनुभव करते हैं, वैसे ही वह मेरे बाहों में लिपटी किसी दूसरे लोक में खो गई थी। इंटर्नशिप वाइवा शुरू होने में 2 मिनट शेष थे, मैंने आहिस्ते से आवाज दी...- चलें वाइवा देने या इसी पोजीशन म