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Showing posts from April, 2022

मुझे पसंद है-

मुझे पसंद है तुम्हारा लाइब्रेरी में बैठे किताबों से गुफ्तगू करना, मुझे पसंद है तुम्हारा गहन अध्ययन, तुम्हारी गंभीरता। मुझे पसंद तुम्हारी बातों का भारीपन, तुम्हारे कहने का सलीका और मुद्दे की समझ, मुझे पसंद हैं तुम्हारे विज्ञानसम्मत तथ्य, मैं तुमसे करना चाहता हूँ बातें साम्यवाद पर, समाजवाद पर, पूँजीवाद पर, मै तुमसे जानना चाहता हूँ तुम्हारा दुनिया को देखने का नजरिया, मै तुमसे दर्शन, विज्ञान, मनोविज्ञान, साहित्य सभी पर चर्चा करना चाहता हूँ, लेकिन इतना सब किसी एक ‘तुम’ में नहीं मिलता, हर जगह हल्के लोग और उनका हल्कापन, यह सब देखकर मेरे दिमाग में गोलमटोल चीजें घूमनें लगती हैं- आकर्षण,प्रतिकर्षण,इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान, चैडविक, रदफोर्ड, गोल्डस्मिथ, न्यूटन, मेण्डल, मैडलीफ, ल्यूवेनहाँक, प्लाजमोडियम, ट्यूबरकुलोसिस, मलेरिया, केल्विन साइकल, निराला, पंत, महादेवी, अज्ञेय, मुक्तिबोध, देवताले, नागार्जुन, प्रेमचंद, भंडारी, यादव, कमलेश्वर, द्वैतवाद, अद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, साइन्स कालेज,बायोटेक्नोलॉजी, NIT, IIT, DU, JNU,IIMC वर्धा, जामिया, किसी को छोड़ने का अफसोस तो किसी को न पाने का दुख, और किसी

मैंने लोगों को बदलते देखा है।

दिल्ली आने से पहले मैंने हजारों बार सोचा था कि- कैसी होगी दिल्ली ? कैसे होंगे यहाँ के लोग ? कैसा होगा यहाँ का परिवेश ? और... कैसे छोटे शहरों और गाँवों से आए हुए लोग कुछ समय बाद बदल जाते होंगे? यही सब सोच- सोच कर आखिर मैं भी कुछ महीनों के लिए दिल्ली आ ही गया। और, बहुत कुछ तो नहीं देखा, पर हाँ! छोटे शहरों से आए हुए लोगों को बदलते जरूर देखा। वो जो कभी रूम में बैठे ज्ञान देते थे कि- जिंदगी में कोई भी ऐसा काम मत करना जिसे अपने मम्मी पापा से छुपाना पड़े, वो जो मेरे मुँह से एक भी गाली निकलने पर कह देते थे कि- तुममें बात करने का शऊर नहीं है, तुम्हें बात करने का सलीका नहीं आता, वो जो दिल्ली आकर इतने गंभीर हो गए थे, जिन्हें देखकर लगता था कि- भगवान राम के बाद पृथ्वी पर इनका ही अवतार हुआ है, वो जो बात- बात पर हमसे खफ़ा हो जाते थे, हमेशा शिकायत होती थी उनकी कि- आप लोगों को तो अपने रूममेंट का भी खयाल नहीं है। मैंने उन लोगों को भी बदलते देखा है। बदलना यानी कि परिवर्तित होना, बहुत अच्छी बात है, परिवर्तन ही जीवन का नियम है, लेकिन बदलाव जब आपको गर्त में धकेलने लगे, तब वह बदलाव नहीं कुछ और हो जाता है। मैं