दिल्ली में भोगा अपना यथार्थ

अप्रैल का महीना, साल 2022, दिल्ली का कोई मेट्रो स्टेशन

3 साल से कोई कपड़े नहीं खरीदे थे, इसलिए पैसे ना होने के बावजूद पालिका बाजार चला गया था। साथ में थे हमारे बंगला नंबर 14 के जिगरी यार। वहां हमने शॉपिंग की, और बढ़िया कपड़े भी खरीदे।

नए कपड़े पहनने की इतनी जल्दी थी कि मुझसे रहा न गया। पालिका बाजार से निकलते ही राजीव चौक मेट्रो स्टेशन के बाहर मैंने कपड़े चेंज कर लिए। सारे लौंडे खूब तारीफ कर रहे थे। मकसद भले ही उनका चने की झाड़ पर चढ़ाना रहा हो, लेकिन तारीफ तो तारीफ होती हैं ना गुरु, आदमी चने की झाड़ पर तो क्या एफिल टावर पर भी चढ़ जाए।

खैर! मुझे 3 साल बाद नए लिवास धारण करने की खुशी थी और मेरे साथ वाले भी बहुत खुश थे। इसी खुशी में मस्ती करते हुए हम सब आईआईएमसी हॉस्टल की तरफ कूच करने लगे। बीच में एक मेट्रो स्टेशन में ( नाम ठीक से याद नहीं) हमारे फोटो शूट चलने लगे। उस दिन ना तो मेरा बर्थडे था, ना कोई लॉटरी लगी थी, और ना ही मेरा प्लेसमेंट हुआ था, पर पता नहीं क्या था कि फोटो शूटिंग का केंद्र बिंदु मै ही था। ज्यादातर फोटो मेरे ही खींचे गए। सोलो भी और ग्रुप भी। 

उसी वक्त एक मजेदार वाकया हुआ था। लाइव कमेंट्री सुनिए-

रमनदीप फोटो खींच रहा है, सब लोग उसके पीछे खड़े हैं, सबकी निगाहें रमनदीप की मोबाइल स्क्रीन पर हैं। इसी बीच उत्तम 1रु का सिक्का लेकर आता है और कहता है- 'फोटो तो तेरी क्या ही आएगी, ले मिठाई खा लेना'। और तभी रमनदीप की उंगलियां फोटो क्लिक कर लेती हैं। एक रुपए देते हुए उत्तम की हथेलियां कैमरे में कैद हो जाती हैं।

ये तो था तस्वीर खींचने का वाकया। अब असल बात पर आते हैं। यह जो तस्वीर में मैंने शर्ट पहनी है। ये उत्तम और आशीष ने पसंद की थी। लेकिन इस शर्ट को मैंने सिर्फ राजीव चौक से अपने रूम तक ही पहना। इसके बाद जस का तस रख दिया। जैसे दुकान में पहले पड़ा था। 

लगभग 3 महीने तक इसका कोई यूज़ नहीं हुआ। लेकिन जिस शाम उसने फोन कॉल पर प्रपोज किया था उस दिन एक बात कही थी- 'कल लाइब्रेरी आएगा, तो ऐसे ही मुंह उठाके मत चले आना।' 

सवेरे से तीन बार उसका कॉल आ चुका था। 

'कहां पर है तू, कित्ते बजे लाइब्रेरी आएगा, मैं कब से तेरा वेट कर रही हूं।' 

उसके इस उलाहने और बेचैनी की जल्दबाजी में मै सच में कुछ न ले जा सका। रोज की तरह खाली हाथ ही लाइब्रेरी चला गया।

लेकिन इस दिन एक चीज में फर्क था। शर्ट मैंने नई वाली ( जो तस्वीर में दिख रही है) पहन रखी थी। वो भी इन करके। 

अब लाइब्रेरी का वाकया सुनिए

एकदम फॉर्मल लुक में मैं लाइब्रेरी पहुंचता हूं और वह देखकर मुस्कुरा देती है। चेयर उसने पहले से ही रिजर्व कर रखी थी (नए बनने वाले कपल, या नए बने कपल प्यार के गाढ़ेपन के कारण लाइब्रेरी की कुर्सियों पर भी एकाधिकार कर लेते हैं) 

मैं जाकर उसके बगल वाली चेयर पर बैठ जाता हूं और अपने बैग से किताबें निकालने लगता हूं। तभी वह उलाहने भरे स्वर में कहती है- 'बड़ी जल्दी नहीं आ गए आप? और गुस्साए हुए अंदाज़ में अखबार पढ़ने लगती है। मैं भी अपनी किताब पढ़ने लगता हूं। लेकिन कुछ सेकंड बाद वह कुर्सी और पास लाते हुए कहती है- 'बाय द वे इस शर्ट में जच रहा है तू'

और फिर थोड़ी देर पढ़ने के बाद हम कैंटीन चले जाते हैं।' पहले प्यार के पहले दिन वाली फीलिंग आ रही थी। हमने उस दिन खूब इंजॉय किया। फिर यह दिन अनचाहे तो क्या चाहकर भी वापस नहीं आया। यादों में भी नहीं।

लेकिन हाल ही में जब हम एक दूसरे से अलग हुए तब उसने एक स्टेटस लगाया था, और ये जो पोस्ट में दूसरी फोटो लगी हुई है इसे शेयर करते हुए लिखा था- 'ये दिन मुझे हमेशा याद रहेगा, खासकर तुम्हारी शर्ट'।

पर मुझे आज रियलाइज हो रहा है कि

खूबसूरत चीजें वाकई ज्यादा दिन नहीं टिकतीं हैं।

क्योंकि आज जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं, तब शर्ट किसी और के पास है, वो किसी और के पास है, और मैं रूम में अकेला आधी रात को नीद का इंतजार कर रहा हूं। यह जानते हुए कि सुबह उठकर 9 घंटे काम करना है।

शायद ऐसी ही होती होगी मोहब्बत?????????

किसी ने यूं ही तो नहीं लिख दिया होगा - वो मेरी नींद, मेरा चैन मुझे लौटा दो......।

नोट- दूसरी तस्वीर में दिख रहे मेरे दोस्तों का इस कहानी से कोई वास्ता नहीं है। फोटो उसने खींची थी, वो भी मेरे लिए, लेकिन मुझसे बिना बताए। संयोगवश तस्वीर में आप सब हैं।

Comments

  1. बहोत ख़ूब भाई विमलेश👍👍

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